लिवर हमारे शरीर का सबसे बड़ा और मत्वपूर्ण आंतरिक अंग है। और इनमे किसी कारण वश कमी आ जाए तो ये काफी नुकसानदायक साबित हो जाता है। क्युकि लिवर के ही जरिये हमारे शरीर के आंतरिक काम होते है। पर किसी कारणवश ये ख़राब हो जाए तो, कैसे होम्योपैथिक दवाई व इलाज इसमें कारगर होंगे;
लिवर की समस्या क्या है ?
- पैरासाइट या वायरस की वजह से लिवर में संक्रमण हो सकता है। जिसके कारण लिवर में सूजन आ जाती है और लिवर का कार्य बाधित होता है।
- तो वही लिवर को नुकसान पहुंचाने वाले वायरस खून, वीर्य, संक्रमित भोजन और पानी भी हो सकते है। सबसे प्रमुख तरह से लिवर इंफेक्शन की बात करे तो वो हेपेटाइटिस वायरस हैं, जिसमें हेपेटाइटिस-ए, हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी शामिल होता हैं।
लिवर की समस्याओ में कौन-कौन से रोग शामिल है ?
- त्वचा और आंखों का पीला पड़ना।
- पेट दर्द और सूजन की समस्या।
- पैरों और टखनों में सूजन का आना।
- त्वचा में खुजली की समस्या।
- पेशाब का रंग गहरा होना।
- मल के रंग का पीला होना।
- बहुत अधिक थकावट महसूस करना।
- मतली या उलटी की समस्या।
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लिवर रोग के लिए कौन-सी होम्योपैथिक दवाई है बेहतर ?
- लीवर की समस्याओं के लिए अत्यधिक अनुशंसित होम्योपैथिक दवाएं चेलिडोनियम, कार्डुस मैरिएनस और नैट्रम सल्फ्यूरिकम हैं।
- लिवर संक्रमण के लिए चेलिडोनियम एक बेहतरीन उपाय है।
- होम्योपैथिक दवा चेलिडोनियम से हेपेटाइटिस, पित्त पथरी और पीलिया का अच्छा इलाज किया जाता है।
- तो वही “कार्डुस मैरिएनस” ने ड्रॉपिकल स्थितियों के साथ लिवर सिरोसिस में उल्लेखनीय परिणाम दिखाए हैं।
- “नैट्रम सल्फ्यूरिकम” लीवर की समस्याओं जैसे पीलिया, हेपेटाइटिस और अन्य पित्त संबंधी शिकायतों के लिए होम्योपैथिक दवाओं में सबसे मूल्यवान है।
- “चेलिडोनियम, आर्सेनिक एल्बम और फास्फोरस” – लीवर की समस्याओं जैसे हेपेटाइटिस के लिए शीर्ष होम्योपैथिक दवाएं।
- “मैरियनस और फास्फोरस” – सिरोसिस जैसी लीवर की समस्याओं के लिए प्रभावी होम्योपैथिक दवाई है।
- पिक्रिकम एसिडम और लैकेसिस – लीवर की समस्याओं जैसे फैटी लीवर के लिए सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक दवाइयां है।
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होम्योपैथिक में लिवर रोग का इलाज कैसे किया जाता है ?
- होम्योपैथी तीव्र और पुरानी दोनों तरह की लिवर समस्याओं के इलाज में बहुत प्रभावी है। होम्योपैथी उपचार के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाती है। होम्योपैथिक दवाएं गहरी क्रिया करती हैं और शरीर पर इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के विपरीत, होम्योपैथिक दवाएं रोग और उसके लक्षणों को दबाती नहीं हैं, बल्कि जड़ से उसका खात्मा करती है।
- इसके अलावा होम्योपैथिक इलाज में शरीर की अपनी पुनरोद्धार प्रक्रियाओं की शुरुआत होती हैं, जिससे यह बीमारी को पूरी तरह खत्म करने के लिए पर्याप्त मजबूत हो जाता है। रोग प्रक्रिया को दबाने से यह जिद्दी हो जाता है। एक बार जब शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत हो जाती है, तो यह रोग की पुनरावृत्ति को रोकता है।
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निष्कर्ष :
यदि लिवर रोग का इलाज आप भी होम्योपैथिक तरीके से करवाना चाहते है तो उपरोक्त बातो को जानने के बाद ही इसका इलाज करवाने के बारे में सोचो। और बिना किसी डॉक्टर के सलाह पर इलाज न करवाए।